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कांग्रेस का नंदकुमार साय पर चुनावी दांव!, मनाएंगे रूठे आदिवासियों को

चुनावी साल में सियासी शतरंज बिछ गई है

डेस्क। चुनावी साल में सियासी शतरंज बिछ गई है और शुरू हो गई है जोड़ तोड़ की राजनीति। छत्तीसगढ़ की राजनीति में कांग्रेस ने एक बड़ा दांव चला है। क्योंकि कांग्रेस को मालूम था, आरक्षण के मुद्दे पर आदिवासियों में नाराजगी होगी। ऐसे में कोर्ट के फैसले के बाद बैकफुट पर आई कांग्रेस ने बीजेपी के आदिवासी नेता नंदकुमार साय (nandkumar sai) की नाराजगी का फायदा उठाते हुए उन्हें पार्टी में शामिल करा लिया है। ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञों को कहना है कि कांग्रेस इनके चेहरे को लेकर आदिवासी क्षेत्र में जाएगी और आदिवासियों को समझाएगी, कैसे बीजेपी ने उनके मिशन को फेल कर दिया। वैसे जबकि आरक्षण का पूरा मामला ही संवैधानिक दांवपेंचों पर टिका था। फिर भी चुनावी लाभ लेने के लिए कांग्रेस को कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। लिहाजा, नंदकुमार साय के चेहरे को ही कांग्रेस आदिवासी नेता के रूप में प्लांट करेगी। वहीं बीजेपी के खिलाफ भी नंदकुमार सॉय को हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगी।

आदिवासी नेता नंदकुमार सॉय को बीजेपी में लगा, उनकी उपेक्षा हो रही है और आदिवासी के हितों के मुद्दों से बीजेपी भटक गई है। हालिया चले, आरक्षण के मुद्दे से भी वह व्यथित थे। जब उन्होंने पार्टी छोड़ी तो अपना दर्द बयां किए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वाली पार्टी अब बीजेपी नहीं रही। उन्होंने मुझे आगे बढ़ाया। इस वजह से उन्होंने बीजेपी छोड़ी और भूपेश और मरकाम की अगुवाई में कांग्रेस में शामिल हुए। इसके बाद बीजेपी में राज्य ही नहीं केंद्र तक हड़कंप मचा। बीजेपी के इस अविश्वसनीय सियासी घटनाक्रम का अंदाजा नहीं था। लगे इस बड़े झटके से बीजेपी नेता अभी भी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि नंदकुमार साय पार्टी छोड़ सकते है।

बीजेपी के किसी नेता ने शुभकामना दी तो कुछ ने कहा, उनके लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा खुले हैं। इतना ही नहीं बीजेपी के कद्दावर नेता बृजमोहन और रमन सिंह ने तो यहां तक कह दिया, बीजेपी से सांसद-विधायक रहे। भाजपा के लिए 42 साल तपस्या की। कहा, नंदकुमार साय की बीजेपी मां हैं। बेटों में नाराजगी हो सकती है लेकिन मां से कोई नाराज नहीं हाेता। वे फिर मां के चरणों में आएंगे। बीजेपी के नेताओं के इस बयान के पीछे सबसे बड़ी वजह है कि नंदकुमार साय आदिवासी समाज के बड़े नेता हैं। इनके कांग्रेस में जाने पर बड़ा फर्क पड़ेगा ही। ये दीगर है कि बीजेपी कहे, इनके जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

कांग्रेस में जाने पर बीजेपी के तर्क

बीजेपी का तर्क है कि कांग्रेस यह जान रही थी कि आरक्षण बिल पर सुप्रीम कोर्ट में कुछ नहीं होने वाला है। विधानसभा में पास बिल पर निर्णय नहीं हो पाएगा। ऐसे में आदिवासी समाज में जाने के लिए कांग्रेस को एक बड़े चेहरे की जरूरत थी। क्योंकि आदिवासी समाज आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस नाराज है। यही कारण है कि कांग्रेस ने नंदकुमार साय पर झपट्टा मार लिया है। अब कांग्रेस इनके चेहरे को चुनाव में आदिवासी समाज में यूज करेगी। बहरहाल, इस तर्क में कितना दम है, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। हां, लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस के 76 प्रतिशत आरक्षण बिल पर जिस तरह से सियासी दौर चला उससे आदिवासी समाज भी बीजेपी से नाराज है। जिसका जीता जागता उदाहरण भानुप्रतापपुर का उपचुनाव था। जहां आदिवासी समाज के लोगों ने अपने प्रत्याशी खड़े किए थे। वहां कांग्रेस को जीत मिली लेकिन जीत का अंतर कम था।

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