रायपुर। कहते हैं की राजनीति में कब पासा पलट जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। लेकिन जब पार्टी द्वारा सम्मान और तज्जबों नहीं मिलने से पीड़ा होती है। ऐसे में एक सच्चा राजनीतिज्ञ ही पार्टी छोड़ता है। कुछ ऐसा ही हुआ आदिवासी नेता नंदकुमार साय (Tribal leader Nandkumar Sai) के साथ। जिससे उन्होंने कांग्रेस पार्टी का दामन थामने का निर्णय लिया है। इससे छत्तीसगढ़ में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। आज रायपुर में कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय राजीव भवन में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम और कई कैबिनेट मंत्रियों की मौजूदगी में उन्हें कांग्रेस की सदस्यता दिलवाई गई। गौरतलब है कि रविवार को ही नंदकुमार साय ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव को पत्र लिखा है। इसमें साय ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा देने की बात कही थी ।
साय ने अपने पत्र में लिखा था कि ‘ आज भारतीय जनता पार्टी जिसके गठन से लेकर आज पर्यन्त तक पूरे मेहनत एवं ईमानदारी से सींच कर फर्श से अर्श तक पहुंचाया था, उसे छोड़ते समय अत्यंत पीड़ा एवं दुख तो हो रहा है, लेकिन वर्तमान में पार्टी में मेरी छवि एवं गरिमा को जैसे आहत किया जा रहा था, उसके अनुरूप अपने आत्मसम्मान को देखते हुए मेरे पास अन्य कोई विकल्प नही बचा है। भारतीय जनता पार्टी में मेरे साथ कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं एवं साथियों का बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद।
ज्ञात हो कि नंदकुमार साय 5 बार सांसद , तीन बार विधायक, 2 बार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। वह एक बड़े आदिवासी चेहरा और आदिवासी मुख्यमंत्री के दौड़ में सबसे पहले पायदान पर हैं । अविभावित मध्यप्रदेश में वह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का पद भी संभाल चुके हैं। साथ ही वह छत्तीसगढ़ भाजपा के अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं।
नंदकुमार साय 1989 में लोकसभा सांसद बने , 1996 में दूसरी बार और 2004 में छत्तीसगढ़ गठन के बाद तीसरी बार लोकसभा सांसद बने। इसके बाद उनका राजनीतिक सफर आगे बढ़ा और 2009 में राज्यसभा के सांसद के लिए चुने गए। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में उन्हें 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था ।
नंदकुमार साय अविभाजित मध्यप्रदेश में भी बीजेपी के कई बड़े पदों पर रहे। 1996 में मध्यप्रदेश अनुसूचित जनजाति के प्रदेश अध्यक्ष बने इसके बाद संगठन ने 1997 से 2000 के बीच मध्यप्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंपी गई। यह भाजपा के भीतर उनके कद का ही कमाल था कि 2000 में जब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से अलग हुआ ,तो नंदकुमार साय छत्तीसगढ़ के विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता भी बने।